फेडरल रिजर्व का बड़ा फैसला: ब्याज दरें स्थिर, क्या 2008 जैसी मंदी की आहट?

वॉशिंगटन, 19 मार्च 2025: अमेरिकी फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल ने ब्याज दरों को 4.25% से 4.5% के बीच स्थिर रखने का निर्णय लिया है। इस फैसले ने वैश्विक वित्तीय बाजारों में हलचल मचा दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी जैसे हालात पैदा कर सकता है।

ब्याज दरों को स्थिर रखने के पीछे मुख्य कारण

  1. मुद्रास्फीति पर नियंत्रण: अमेरिकी बाजारों में मुद्रास्फीति अभी भी ऊंचे स्तर पर बनी हुई है। यदि ब्याज दरों में कटौती होती, तो महंगाई और बढ़ सकती थी।
  2. बाजार की अस्थिरता: हाल ही में बैंकिंग सेक्टर में संकट और शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव ने फेड को सतर्क कर दिया है।
  3. वैश्विक दबाव: चीन की अर्थव्यवस्था में सुस्ती और यूरोप में आर्थिक संकट ने अमेरिका को अपनी मौद्रिक नीति को सख्त बनाए रखने पर मजबूर कर दिया है।

फेडरल रिजर्व के फैसले का असर

🔹 उधारी महंगी होगी: उच्च ब्याज दरों के कारण होम लोन, कार लोन और क्रेडिट कार्ड पर ब्याज दरें अधिक बनी रहेंगी, जिससे आम लोगों की जेब पर असर पड़ेगा।
🔹 शेयर बाजार में गिरावट: निवेशकों को डर है कि उच्च ब्याज दरें कंपनियों की लाभप्रदता घटा सकती हैं, जिससे स्टॉक मार्केट दबाव में रहेगा।
🔹 बेरोजगारी में इजाफा: कंपनियां अपने खर्चों में कटौती कर सकती हैं, जिससे नौकरियों पर संकट मंडरा सकता है।

क्या 2008 की आर्थिक मंदी दोहराई जा सकती है?

वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार, 2008 की आर्थिक मंदी भी इसी तरह शुरू हुई थी, जब बैंक कर्ज चुकाने में असफल रहे और नकदी संकट गहरा गया।

  • यदि मौजूदा स्थिति बिगड़ती है, तो वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार हो सकती है
  • भारत जैसे विकासशील देशों पर भी असर पड़ सकता है, जहां रुपये की कमजोरी और निवेश की कमी दिख सकती है।

क्या फेडरल रिजर्व के इस फैसले से दुनिया एक और आर्थिक संकट की ओर बढ़ रही है? आने वाले महीनों में इसके प्रभाव स्पष्ट होंगे।